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बसन्त

बागेश्री

भैरव

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भैरव Raagparichay Tue, 22/02/2022 - 05:05 राग भैरव प्रभात बेला का प्रसिद्ध राग है। इसका वातावरण भक्ति रस युक्त गांभीर्य से भरा हुआ है। यह भैरव थाट का आश्रय राग है। इस राग में रिषभ और धैवत स्वरों को आंदोलित करके लगाया जाता है जैसे -  सा रे१ ग म रे१ रे१ सा । इसमें मध्यम से मींड द्वारा गंधार को स्पर्श करते हुए रिषभ पर आंदोलन करते हुए रुकते हैं। इसी तरह  ग म ध१ ध१ प  में निषाद को स्पर्श करते हुए धैवत पर आंदोलन किया जाता है। इस राग में गंधार और निषाद का प्रमाण अवरोह में अल्प है। इसके आरोह में कभी कभी पंचम को लांघकर मध्यम से धैवत पर आते हैं जैसे -  ग म ध१ ध१ प । इस राग में पंचम को अधिक बढ़ा कर गाने से राग रामकली का किंचित आभास होता है इसी तरह मध्यम पर अधिक ठहराव राग जोगिया का आभास कराता है। भैरव के समप्रकृतिक राग कालिंगड़ा व रामकली हैं। करुण रस से भरपूर राग भैरव की प्रकृति गंभीर है। इस राग का विस्तार तीनों सप्तकों में किया जाता है। इस राग में ध्रुवपद, ख्याल, तराने आदि गाये जाते हैं। इस राग के और भी प्रकार प्रचलित हैं यथा - प्रभात भैरव, अहीर भैरव, शिवमत भैरव आदि। यह स्वर संगतियाँ राग भैर

बिलासखानी तोडी

मोहनकौन्स

मोहनकौन्स Raagparichay Sun, 20/02/2022 - 22:02   राग मालकौंस में यदि आरोह में गंधार शुद्ध और अवरोह में गंधार कोमल का प्रयोग किया जाय तो वह राग मोहनकौंस बन जायेगा। यह राग पूर्वांग में राग जोग और उत्तरांग में राग मालकौंसका मिश्रण है। यह एक सीधा राग है और इसे तीनों सप्तकों में उन्मुक्त रूप से गाया जा सकता है। यह राग एक शांत और गंभीर वातावरण पैदा करता है। यह स्वर संगतियाँ राग मोहनकौंस का रूप दर्शाती हैं -  सा ,नि१ ,ध१ ; ,ध१ ,नि१ सा ; सा ग ग म ; ग म ग१ सा ; ग म ध१ म ; ध१ नि१ सा' ; सा' ग१' सा' नि१ ध१ म ग ; म नि१ ध१ म ग ; म ध१ ग ; म ग१ सा; यह राग बहुत ही मधुर परंतु अपेक्षाकृत नया होने के कारण बहुत प्रचलन में नहीं है। परंतु  उस्ताद सलामत अली और नज़ाकत अली खान  द्वारा यह राग गाया गया है। जिससे प्रभावित हो कर  आचार्य तनरंग  जी ने मोहनकौंस में बंदिशों की रचना की है। मूलतः, महात्मा गाँधी को समर्पित करते हुए  पंडित रवि शंकर जी  ने राग मोहनकौंस की रचना की है, जो इस प्रकार है -  सा ग म ध१ नि१ सा' - सा' नि१ ध१ म ग ; म रे ग म सा;  पंडित रवि शंकर जी ने कोमल गंधार का कण स्वर

मेघ मल्हार

मेघ मल्हार Raagparichay Sun, 20/02/2022 - 18:08 राग मेघ मल्हार बहुत ही मधुर और गंभीर वातावरण पैदा करने वाला राग है। इस राग के सभी स्वर राग मधुमाद सारंग के ही सामान हैं। परन्तु राग मधुमाद सारंग में सारंग अंग प्रभावी होता है जैसे -  सा रे म रे ; म प नि१ प म रे , जिसमें वादी स्वर रिषभ है और मध्यम-रिषभ की संगती में मींड का उपयोग नहीं किया जाता। जबकि राग मेघ मल्हार में रिषभ हमेशा मध्यम का कण स्वर लेते हुए लगते हैं। इसी प्रकार राग मधुमाद सारंग में  नि१-प  बिना मींड के सीधा गाया जाता है जबकि मेघ मल्हार में  नि१-प  गाते समय मींड का प्रयोग करते हुए पंचम को कण स्वर लेते हुए  (प)नि१-प  लेते हैं मेघ मल्हार का वादी स्वर  सा  है। राग मेघ मल्हार एक प्राचीन राग है अतः इसमें ध्रुवपद अंग का प्रभाव होने के कारण इस राग में गमक और मींड का उपयोग ज्यादा किया जाता है। इस राग में रिषभ और पंचम की संगती मल्हार अंग प्रदर्शित करती है। इस राग का विस्तार तीनों सप्तको में किया जा सकता है। गुरुमुख से सीखने से ही इस राग को आत्मसात किया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग मेघ मल्हार का रूप दर्शाती हैं - सा ,नि१ ; ,न

भटियार

भीम

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भीम Raagparichay Sun, 20/02/2022 - 14:04 राग भीम को गावती के नाम से भी जाना जाता है। इस राग के उत्तरांग में कोमल निषाद को तार सप्तक के षड्ज का कण लगाते हुए गाते हैं जैसे -  ग म प (सा')नि१ सा' । इसी प्रकार अवरोह में कोमल निषाद को छोड़ा जाता है जैसे -  सा' (प)ध प  और  म ग रे सा  की अपेक्षा  ग म रे सा  लिया जाता है। तानों में  सा ग म प नि१ सा' ; सा' नि१ ध प ग म रे सा  इस तरह से लिया जाता है। यह स्वर संगतियाँ राग भीम का रूप दर्शाती हैं - ,नि१ सा ग म प नि१ प नि१ सा' ; सा' नि१ ध प ध म प ; ग म रे सा ; रे ,नि१ सा ; ,प ,नि१ सा ग म रे सा ; थाट काफी " class="video-embed-field-lazy"> राग जाति औडव - सम्पूर्ण गायन वादन समय दिन का तृतीय प्रहर १० से १ बजे तक आरोह अवरोह ,नि१ सा ग म प नि१ सा' - सा' नि१ ध प म ग प म ; ग म रे सा ; ,नि१ सा ; ,प ,नि१ सा। वादी स्वर षड्ज/पंचम संवादी स्वर षड्ज/पंचम राग के अन्य नाम गावती Tags सुपर भीम छोटा भीम Super Bheem माइटी लिटिल भीम छोटा भीम लगाओ बड़ा भीम छोटा भीम स्ट

भीमपलासी

भूपाल तोडी

भूपाल तोडी Raagparichay Sun, 20/02/2022 - 08:08 राग भूपाल तोडी, शुद्धता और पवित्रता का सूचक है। इसलिये इस राग में भक्ति रस से परिपूर्ण बन्दिशें अधिक सुनायी देतीं हैं। राग भूपाली में राग तोडी जैसे स्वर लेने पर राग भूपाल तोडी सामने आता है। यह राग तीनों सप्तकों में गाया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग भूपाल तोडी का रूप दर्शाती हैं - सा ,ध१ सा ; ,ध१ रे१ रे१ सा ; सा रे१ ग१ रे१ सा ; रे१ रे१ ग१ रे१ ; ग१ प रे१ रे१ ग१ ; ग१ प ध१ प ; ध१ सा' ; ध१ प ; प रे१ ग१ रे१ सा ; ग१ रे१ ; रे१ ग१ रे१ सा ;    थाट भैरवी राग जाति औडव - औडव गायन वादन समय दिन का प्रथम प्रहर प्रात: ४ बजे से ७ बजे तक (संधिप्रकाश ) आरोह अवरोह सा रे१ ग१ प ध१ सा' - सा' ध१ प ग१ रे१ सा ,ध१ रे१ सा; वादी स्वर धैवत/गंधार संवादी स्वर धैवत/गंधार Tags राग तोड़ी का परिचय राग देसी का परिचय राग चंद्रकौंस का परिचय राग परिचय राग देव गंधार राग दरबारी परिचय राग भूपाल तोडी Log in to post comments 629 views from Raag https://ift.tt/HPMXRpO via IFTTT

भूपाली

रामदासी मल्हार

श्री

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श्री Raagparichay Fri, 18/02/2022 - 02:02 राग श्री एक पुरुष राग है। भारतीय संगीत शास्त्रों में 6 पुरुष राग और 36 रागिनियों का वर्णन किया गया है। ये 6 पुरुष राग हैं - राग भैरव, राग मालकौंस, राग हिंडोल, राग श्री, राग दीपक और राग मेघ-मल्हार। यह पूर्वी थाट का प्राचीन राग है। इस राग के स्वरों की स्थिति और उन्हें गाने की पद्धति के कारण राग श्री गायन वादन के लिए कठिन है। यह वक्रता लिए हुए एक मींड प्रधान राग है। इस राग का वादी रिषभ और संवादी पंचम है। इस राग का विस्तार रिषभ को केंद्र में रखते हुए किया जाता है। रिषभ-पंचम-रिषभ की मींड प्रधान संगती और अवरोह में  रे१' नि ध१ प ; ध१ म ग रे१ ; सा  ये स्वर इस राग का रूप दर्शाते है। इस राग का विस्तार मध्य और तार सप्तक में अधिक किया जाता है। यह राग भक्ति भावना प्रधान राग होने के साथ साथ वातावरण में थोड़ी व्यग्रता भी उत्पन्न करता है। यह स्वर संगतियाँ राग श्री का रूप दर्शाती हैं - सा ,नि रे१ म् प ; प रे१ रे१ प ; म् प ध१ म् ग रे१ ; रे१ प रे१ ग रे१ सा ; म् प नि ; नि सा' ; म् प नि सा' रे१' ; रे१' सा' रे१' नि ध१ प ; प म् प ध१

शहाना कान्ह्डा

शहाना कान्ह्डा Raagparichay Thu, 17/02/2022 - 06:06 राग शहाना कान्हड़ा में धैवत एक महत्वपूर्ण स्वर है जिस पर न्यास किया जाता है। अन्य न्यास स्वर पंचम है। इस राग की राग वाचक स्वर संगती है -  ग१ म ध ; ध नि१ प ; नि१ ध नि१ प ; ध म प सा' ; ध नि१ प ; ग१ म रे सा । इस राग का निकटस्थ राग बहार है, जिसका न्यास स्वर मध्यम होता है ( नि१ ध नि१ प म )। जबकि शहाना कान्हड़ा में न्यास स्वर पंचम है ( नि१ ध नि१ प )। यह उत्तरांग प्रधान राग है, जिसका विस्तार मध्य और तार सप्तक में खिलता है। यह स्वर संगतियाँ राग शहाना कान्हडा का रूप दर्शाती हैं - नि१ सा रे ग१ म ; म प म ग१ म ध ; ध नि१ प ; ग१ म प ध नि१ सा'; सा' नि१ ध नि१ प ; ध म प सा' ; नि१ सा' रे' सा' ; सा' नि१ ध नि१ प ; म प ग१ ग१ म ; रे सा ; थाट काफी Tags Tanarang hindi रात्री चे राग राग आरोह अवरोह राग देसी का परिचय तनरंग राग चंद्रकौंस का परिचय राग बंदिश राग तोड़ी का परिचय राग शहाना कान्ह्डा Log in to post comments 200 views from Raag https://ift.tt/MUE6hRI via IFTTT

शुद्ध सारंग

शुद्ध कल्याण

सरस्वती

सरस्वती Raagparichay Wed, 16/02/2022 - 22:02 इस माधुर्य से परिपूर्ण राग को कर्नाटक संगीत पद्धति से हिंदुस्तानी संगीत में लाया गया है। राग सरस्वती में पंचम-रिषभ संगती राग वाचक है। मध्यम तीव्र का एक महत्वपूर्ण स्थान है। कोमल निषाद का प्रयोग ऐसे किया जाता है -  रे म् प ध सा' नि१ ध ; म् प नि१ ध ; रे म् प सा' नि१ ध ; प म् ध प (म्)रे ,नि१ ,ध सा । यह स्वर संगतियाँ राग सरस्वती का रूप दर्शाती हैं - रे रे म् म् प ; रे म् प ध नि१ ध ; प ; ध सा' रे' ; नि१ नि१ ध प ; ध प म् प ; म् रे ; रे म् प ; म् नि१ ध प ; म् प म् रे ; सा रे ,नि१ ,ध सा ; सा रे म् प रे म् प ; ध सा' नि१ ध ; म् प (म्)रे ; सा रे ,नि१ ,ध सा; कुछ संगीतकार इस राग में आरोह में कोमल निषाद का उपयोग करते हुए इसकी जाती को षाढव-षाढव मानते हैं। थाट खमाज Tags माँ सरस्वती मंत्र सरस्वती वंदना सरस्वती वंदना संस्कृत सरस्वती आरती सरस्वती माता फोटो सरस्वती वंदना लिखा हुआ सरस्वती फोटो सरस्वती माता की कहानी राग सरस्वती Log in to post comments 675 views from Raag https://ift.tt/lvBdTZY

सारंग (बृंदावनी सारंग)

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सारंग (बृंदावनी सारंग) Raagparichay Wed, 16/02/2022 - 19:09 राग सारंग को राग बृंदावनी सारंग भी कहा जाता है। यह एक अत्यंत मधुर व लोकप्रिय राग है। इस राग में  रे-प, म-नि, नि१-प, म-रे  की स्वर संगतियाँ राग वाचक तथा चित्ताकर्षक हैं। इस राग के पूर्वार्ध में  प रे म रे  और उत्तरार्ध में  नि१ प म रे  यह स्वर समुदाय बहुतायत से लिये जाते हैं।  रे म प नि ; नि नि सा' ; नि१ प म रे सा  - यह संगति रागरूप दर्शक और वातावरण परक है। इसके सम प्रकृति राग सूर मल्हार, मेघ मल्हार हैं। सारंग के कई अन्य प्रकार भी प्रचिलित हैं जैसे - शुद्ध सारंग, मियाँ की सारंग, मधुमाद सारंग आदि। यह स्वर संगतियाँ राग बृंदावनी सारंग का रूप दर्शाती हैं - ,नि सा रे ; रे म रे ; सा ,नि सा ; सा रे म प ; प रे ; म रे नि१ प ; म प नि नि सा' ; सा' नि१ प नि१ प ; म रे ; प म रे ; ,नि सा ; ,नि सा रे सा ; थाट काफी " class="video-embed-field-lazy"> राग जाति औडव - औडव गायन वादन समय दिन का तृतीय प्रहर १० से १ बजे तक समप्रकृति राग सूरमल्लार न्यास के स्वर सा, रे, प पकड़ रे म प न

सरस्वती केदार

सरस्वती केदार Raagparichay Wed, 16/02/2022 - 14:10 राग सरस्वती केदार, राग सरस्वती और राग केदार के मिश्रण से बना है। राग सरस्वती के स्वर -  रे म् म् प; म् प धनि१ ध प; ,नि१ ,ध सा;  और राग केदार के स्वर -  म् प ध नि सा'; पध प म; म ग प ; सा' रे' सा' ; म' म' रे' सा'  ; मिल कर एक नया और अद्भुत वातावरण पैदा करते हैं। गंधार का अवरोह में बहुत ही अल्प मात्रा में प्रयोग किया जाता है। माधुर्य से परिपूर्ण राग सरस्वती केदार की रचना आचर्य विश्वनाथ राव रिंगे 'तनरंग' द्वारा की गई है। यह स्वर संगतियाँ राग सरस्वती केदार का रूप दर्शाती हैं - सा रे म् म् म् प ; पध प नि१ नि१ ; ध प धप म् प म ; सा रे म् प ; ध सा' नि१ धप ; ध म् प ; ध प म ; म सा रे रे सा म् प धप सा' ; म् प धनि सा' ; धनि१ ध प ; धप म् प म ; सा रे म् प ; म् प रे म् प ध सा' ; ध नि१ ध प ; ध सा' रे'सा' ; नि१ ; नि१ ध प ; पध प म ; म् सा' रे' सा' ; धसा' रे'सा' ; नि१ध पम् ; पम सा रे रे सा; थाट कल्याण राग जाति औडव - षाडव गायन वादन समय रात्रि

सामंत सारंग

सामंत सारंग Raagparichay Wed, 16/02/2022 - 13:03 राग सामंत सारंग काफी थाट जन्य माना गया है। आरोह में गंधार और धैवत तथा अवरोह में केवल गंधार स्वर वर्जित हैं। इसलिये इसकी जाति ओडव-षाडव है। ऋषभ वादी और पंचम संवादी माना जाता है। गायन समय मध्याह्न काल है। दोनों निषाद तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते है। आरोह– सा रे म प नि सां। अवरोह– सां नि ध प म रे सा। राग के अन्य नाम सामंतसारंग Tags सामंत सारंग राग सामंत सारंग Log in to post comments 125 views from Raag https://ift.tt/lH4ab8z via IFTTT

सिन्धुरा

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सिन्धुरा Raagparichay Wed, 16/02/2022 - 12:02 यह एक चंचल प्रकृति का राग है जो की राग काफी के बहुत निकट है। राग काफी से इसे अलग दर्शाने के लिए कभी कभी निषाद शुद्ध का प्रयोग आरोह में इस तरह से किया जाता है -  म प नि नि सा' । राग काफी में  म प ग१ रे  यह स्वर समूह राग वाचक है जबकि सिंधुरा में  म प ; म ग१ रे ; म ग१ रे सा  इस तरह से लिया जाता है। यह राग भावना प्रधान होने के कारण इसमें रसयुक्त होरी, ठुमरी, टप्पा इत्यादि गाये जाते हैं। यह एक उत्तरांग प्रधान राग है। यह स्वर संगतियाँ राग सिंधुरा का रूप दर्शाती हैं - सा रे म प ; ध प म प ध प म ग१ रे ; म ग१ रे सा ; ग१ रे म प ध सा' ; सा' रे' सा' ; सा' नि१ ध प ; म प ध प म ग१ रे ; म ग१ रे सा ; म प नि नि सा' ; ग१' रे' नि१ ध सा' ; म प ध सा' रे' ग१' रे' सा' ; नि१ ध प म ग१ रे ; म ग१ रे सा; थाट काफी " class="video-embed-field-lazy"> राग जाति औडव - सम्पूर्ण गायन वादन समय दिन का चतुर्थ प्रहर १ से ४ तक आरोह अवरोह सा रे म प ध सा' - सा' नि१ ध प म

सुघराई

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सुघराई Raagparichay Wed, 16/02/2022 - 10:00 राग सुघराई के लक्षण एक जैसे होने के कारण, इन दोनों रागों को मिलाकर राग सुहा सुघराई गाया/बजाया जाता है। राग सुहा के आरोह में रिषभ अल्प होने के कारण सा ; ग१ म रे सा ; सा म म प ; ग१ म रे सा ; म प नि१ प ; प नि१ म प सा' ; सा' प नि१ प ; म प ; ग१ म रे सा ; और राग सुघराई के आरोह में रिषभ का पूर्ण प्रयोग व सारंग अंग की अधिकता के कारण - सा रे म प ; म रे प ; ग१ म रे सा ; म प नि१ प सा' ; नि१ सा' रे' सा' ; नि१ सा' प नि१ प ; नि१ नि१ प म रे सा ; रे (म)ग१ ग१ म रे सा ; - यह स्वर समुदाय बार बार आते हैं। और जहाँ ये स्वर समुदाय एक ही राग में दिखाई देंगे वहाँ राग सुहा सुघराई का स्वरुप प्रकट होगा। दिन के द्वितीय प्रहर में गाया जाने वाला यह राग उत्तरांग प्रधान है। राग सुहा सुघराई में धैवत वर्ज्य, गंधार और निषाद कोमल व अन्य सभी शुद्ध स्वर लगते हैं। इस राग में सुघराई के कारण सारंग अंग ज्यादा दिखाई देता है वहीं राग सुहा का पूर्ण स्वरुप भी। इस राग के वादी संवादी के विषय में गुणीजन भिन्न भिन्न मत रखते हैं। कोई मध्यम/ षड्ज अथवा षड्ज/मध्यम

सौराष्ट्रटंक

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सौराष्ट्रटंक Raagparichay Wed, 16/02/2022 - 08:08 Aarohanam (Ascending) : S R1 G3 M1 P M1 D2 N3 S’ Avarohanam (Descending) : S’ N3 D2 N2 D2 P M1 G3 R1 S Saurashtram is a janya raga, derived from Suryakantam which is 17th on the Melakarta Scale.   Saurashtram is arguably the raga most familiar to listeners as it is included in almost all concerts! I am, of course, referring to the Mangalam or the last song sung in a concert, which is almost always Pavamana (i.e Ni Nama) by Tyagaraja set to Saurashtram. In fact, there are many songs set to this raga, a number which rather surprised me when I researched for this post.  Listeners will probably be familiar with Ninnu Juchi by Patnam Subramanya Iyer, Sri Ganapatini by Tyagaraja and Surya Murte by Muthuswami Dikshitar but there are many other less known songs. The raga does not lend itself to elaborations and the songs are normally quite short pieces, sung quite slowly.  The bhava or mood of the raga is both bhakti (devotion) and cour

सुन्दरकौन्स

सुन्दरकौन्स Raagparichay Tue, 15/02/2022 - 08:08 यह राग बहुत ही प्रभावी और चित्ताकर्षक है। राग मालकौंस के कोमल धैवत की जगह जब शुद्ध धैवत का प्रयोग होता है तब राग सुन्दरकौंस की उत्पत्ति होती है। स्वरों के इस समुदाय ( सा ग१ म ध नि१ सा' - सा' नि१ ध म ग१ सा ) को  राग चंद्रकौंस(बागेश्री अंग)  के नाम से क्वचित ही गाया जाता है। आचार्य तनरंग जी की राय में राग का उक्त नामकरण (चंद्रकौंस (बागेश्री अंग)) अनुचित प्रतीत होता है क्योंकि उक्त स्वर समुदाय में राग चन्द्रकौंस में लगने वाला निषाद शुद्ध वर्ज्य है साथ ही अवरोह में बागेश्री अंग जैसे -  सा' नि१ ध म प ध म ग१ रे सा  भी अनुपस्थित है। और इसी गलत नामकरण के कारण यह राग (चंद्रकौंस(बागेश्री अंग)) ज्यादा प्रचलित नहीं हो पाया। पर इस राग की सुंदरता को देखते हुए आचार्य तनरंग जी ने इस राग का नाम सुन्दरकौंस रखा और कई बंदिशों की रचना की। इस राग में मध्यम और षड्ज के साथ ही शुद्ध धैवत पर भी ठहराव किया जाता है। शुद्ध धैवत की उपस्थिति के कारण यह राग मालकौंस से कुछ कम गंभीर है। इस राग का विस्तार तीनो सप्तकों में किया जा सकता है। यह स्वर संगतिया

रामकली

हमीर

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हमीर Raagparichay Tue, 15/02/2022 - 04:04 राग हमीर रात्रि के समय का वीर रस प्रधान और चंचल प्रक्रुति का राग है। यह कल्याण थाट का राग है।  ग म नि ध ; ध ध प  यह राग वाचक स्वर संगति कान में पडते ही राग हमीर का स्वरूप स्पष्ट हो जाता है।  सा रे सा सा ; ग म नि ध  इस प्रकार निषाद से धैवत पर खटके से अथवा मींड द्वारा आया जाता है। इस राग में तीव्र मध्यम के साथ पंचम लिया जाता है जैसे -  म् प ग म ध । इस राग के आरोह में निषाद को वक्र रूप में लिया जाता है जैसे -  ग म ध नि ध सा' । वैसे ही अवरोह में गंधार को वक्र रूप मे लिया जाता है जैसे -  म प ग म रे सा । आरोह में उत्तरांग इस प्रकार लिया जा सकता है -  ग म (नि)ध नि सा'  या  प ध प प सा'  या  ग म ध नि ध सा'  या  म१ प ध नि सा' । आरोह में सौन्दर्य व्रुद्धि हेतु रिषभ का प्रयोग क्वचित किया जाता है जैसे -  ध प म् प ग म रे ; रे ग म ध प ।  ग म ध प सा'  इस प्रकार पंचम से तार सप्तक के षड्ज पर जाना भी कला पूर्ण और मधुर सुनाई देता है। धैवत इस राग का प्राण स्वर है जिस पर न्यास किया जाता है जो की वीर रस दर्शाता है। इस राग में कभी कभी विव

देस

भैरवी

अहीर भैरव

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अहीर भैरव Raagparichay Mon, 14/02/2022 - 11:01 " class="video-embed-field-lazy"> राग अहीर भैरव का दिन के रागों में एक विशेष स्थान है। यह राग पूर्वांग में राग भैरव के समान है और उत्तरांग में राग काफी के समान है। राग के पूर्वांग का चलन, राग भैरव के समान ही होता है जिसमें रिषभ पर आंदोलन किया जाता है यथा  ग म प ग म रे१ रे१ सा । इसमें मध्यम और कोमल रिषभ की संगती मधुर होती है, जिसे बार बार लिया जाता है। मध्यम से कोमल रिषभ पर आते हुए गंधार को कण के रूप में लगाया जाता है जैसे  म (ग) रे१ सा । इसके आरोह में कभी-कभी पंचम को लांघकर, मध्यम से धैवत पर जाते हैं जैसे -  ग म ध ध प म । धैवत, निषाद और रिषभ की संगती इस राग की राग वाचक संगती है। यह उत्तरांग प्रधान राग है। भक्ति और करुण रस से भरपूर राग अहीर भैरव की प्रकृति गंभीर है। इस राग का विस्तार तीनों सप्तकों में किया जा सकता है। ख्याल, तराने आदि गाने के लिए ये राग उपयुक्त है। यह स्वर संगतियाँ अहीर भैरव राग का रूप दर्शाती हैं -  सा ,नि१ ,ध ,नि१ रे१ रे१ सा ; रे१ ग म ; ग म प ध प म ; रे१ रे१ सा ; ग म प ध प म ; प ध ; प ध नि१ ; ध