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मालकौन्स

सोहनी

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सोहनी Raagparichay Sun, 10/07/2022 - 14:10 यह उत्तरांग प्रधान राग है। इसका विस्तार तार सप्तक में अधिक होता है। यदि इस राग का मंद्र सप्तक में विस्तार किया गया तो राग पूरिया दिखने लगता है और यदि रिषभ और धैवत को प्रबल करके मध्य सप्तक में गाएं तो राग मारवा दिखने लगता है।  तार षडज इस राग का प्राण स्वर है।  ग म् ध नि सा' रे१' सा' ; नि ध नि ध म् ग  - यह राग वाचक स्वर संगति है जिससे राग स्पष्ट दिखने लगता है।  म् म् ग ; नि नि ध ; म्' म्' ग' ; म्' ग' रे१' सा' ; सा' नि ध नि ध म् ग ; ग म् ध ; ग म् ग रे१ सा ; ग म् ध नि सा'  - यह स्वर संगतियाँ तीव्र मध्यम और शुद्ध निषाद के षडज मध्यम भाव को ऐसा मधुर बनाती हैं कि राग रूप में गायक, वादक व श्रोता अपना अस्तित्व भूलकर स्वर साक्षात्कार का दिव्य अनुभव लेते हैं।  इस राग की व्रुत्ति तेजस्वी और विलासी है तथा प्रक्रुति चंचल है। यह स्वर संगतियाँ राग सोहनी का रूप दर्शाती हैं - सा ग ग म् ; म् म् ग ; नि नि ध ; म् म् ग ; सा ग म् ; सा म् ग ; म् ध नि ; म् नि ध ; म् ध ग ; म् ग म् ध नि ध सा' ; सा' नि ध नि ध

सौराष्ट्रटंक

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सौराष्ट्रटंक Raagparichay Sat, 09/07/2022 - 14:10 Aarohanam (Ascending) : S R1 G3 M1 P M1 D2 N3 S’ Avarohanam (Descending) : S’ N3 D2 N2 D2 P M1 G3 R1 S Saurashtram is a janya raga, derived from Suryakantam which is 17th on the Melakarta Scale.   Saurashtram is arguably the raga most familiar to listeners as it is included in almost all concerts! I am, of course, referring to the Mangalam or the last song sung in a concert, which is almost always Pavamana (i.e Ni Nama) by Tyagaraja set to Saurashtram. In fact, there are many songs set to this raga, a number which rather surprised me when I researched for this post.  Listeners will probably be familiar with Ninnu Juchi by Patnam Subramanya Iyer, Sri Ganapatini by Tyagaraja and Surya Murte by Muthuswami Dikshitar but there are many other less known songs. The raga does not lend itself to elaborations and the songs are normally quite short pieces, sung quite slowly.  The bhava or mood of the raga is both bhakti (devotion) and cour

हंसकिंकिणी

हंसध्वनी

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हंसध्वनी Raagparichay Thu, 07/07/2022 - 14:10 यह राग कर्नाटक संगीत पद्धति से हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति में सम्मिलित किया गया है। यह राग, राग शंकरा के करीब का राग है, पर इसमें धैवत वर्ज्य है। राग हंसध्वनि में  नि प सा' नि ; प नि प ग ; ग प ग रे सा  लिया जाता है और राग शंकरा में  नि ध सा' नि ; प ध प ग ; ग प रे ग रे सा ;  लिया जाता है। यह स्वर संगतियाँ राग हंसध्वनि का रूप दर्शाती हैं -  ,नि रे ग सा ; ग प ग ; रे प ग ; नि प ग रे ; ग रे ग रे सा ; ,नि ,प ,नि रे ,नि ,प सा; थाट बिलावल " class="video-embed-field-lazy"> राग जाति औडव - औडव गायन वादन समय रात्रि का द्वितीय प्रहर ७ बजे से १० बजे तक आरोह अवरोह सा रे ग प नि सा' - सा' नि प ग रे सा ,नि ,प ,नि रे सा ; वादी स्वर षड्ज/पंचम संवादी स्वर षड्ज/पंचम Tags राग परिचय राग शंकरा परिचय राग और थाट में अंतर रागों के प्रकार संगीतातील राग कोणते शास्त्रीय संगीत राग राग की जाति मारवा थाट के राग राग हंसध्वनी Log in to post comments 1719 views from Raag

हमीर

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हमीर Raagparichay Wed, 06/07/2022 - 14:10 राग हमीर रात्रि के समय का वीर रस प्रधान और चंचल प्रक्रुति का राग है। यह कल्याण थाट का राग है।  ग म नि ध ; ध ध प  यह राग वाचक स्वर संगति कान में पडते ही राग हमीर का स्वरूप स्पष्ट हो जाता है।  सा रे सा सा ; ग म नि ध  इस प्रकार निषाद से धैवत पर खटके से अथवा मींड द्वारा आया जाता है। इस राग में तीव्र मध्यम के साथ पंचम लिया जाता है जैसे -  म् प ग म ध । इस राग के आरोह में निषाद को वक्र रूप में लिया जाता है जैसे -  ग म ध नि ध सा' । वैसे ही अवरोह में गंधार को वक्र रूप मे लिया जाता है जैसे -  म प ग म रे सा । आरोह में उत्तरांग इस प्रकार लिया जा सकता है -  ग म (नि)ध नि सा'  या  प ध प प सा'  या  ग म ध नि ध सा'  या  म१ प ध नि सा' । आरोह में सौन्दर्य व्रुद्धि हेतु रिषभ का प्रयोग क्वचित किया जाता है जैसे -  ध प म् प ग म रे ; रे ग म ध प ।  ग म ध प सा'  इस प्रकार पंचम से तार सप्तक के षड्ज पर जाना भी कला पूर्ण और मधुर सुनाई देता है। धैवत इस राग का प्राण स्वर है जिस पर न्यास किया जाता है जो की वीर रस दर्शाता है। इस राग में कभी कभी विव